Saturday, July 30, 2011

स्विस बैंक का खुलासा

इसे भारत सरकार के प्रयासों और कालेधन के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का ही नतीजा माना जा सकता है कि कालाधन सुरक्षित रखने के मामले में बदनाम स्विस बैंकों ने भारतीय खाताधारकों की अवैध कमाई का एक शुरुआती आकलन भारत सरकार को सौंप दिया है। इस खुलासे को कालेधन की स्वदेश वापसी की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने हाल में दावा किया था कि सितम्बर महीने से भारत को स्विस बैंकों में जमा कालेधन के बारे में जानकारी मिलने लगेगी। स्विस नेशनल बैं· ने इस सिलसिले की शुरुआत कर दी है। इसे भारतीय नीति नियंताओं की सफलता तो माना जा सकता है लेकिन अंतत: इस सफलता से मिलने वाले फायदों पर संदेह भी होता है। दरअसल स्विस बैंकों ने जमाकर्ताओं के हित में गोपनीयता का जो लबादा ओढ़ रखा है, उसे हटाना भर भारत का मकसद नहीं है। विदेशी बैंकों में जमा धनराशि को स्वदेश वापस लाकर उसे फिर से मुद्रा प्रवाह की मुख्य धारा में समाहित करना भारत का ध्येय है। क्या स्विस नेशनल बैंक ने जो खुलासा किया है उससे हम इस लक्ष्य की प्राप्ति की ओर वाकई आगे बढ़ सके हैं? इस सवाल का जवाब हां में देना फिलहाल संभव नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह कि जबसे विदेशी बैंकों में जमा कालेधन के खिलाफ कार्रवाई के लिए भारत सरकार पर दबाव बढ़ा है, तबसे स्विस बैंकों से धनराशि निकालकर दूसरे देशों के बैंकों में जमा करने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। ऐसे में सिर्फ स्विस बैंकों से मिलने वाली जानकारी समग्र कार्रवाई में मददगार नहीं हो सकेगी। भारत सरकार को मॉरीशस, सिंगापुर तथा अन्य ऐसे देशों की सरकारों से भी बातचीत करनी होगी जहां के बैंकों में भारतीय धन की तालाबंदी हो रही है। यह अच्छी बात है कि मॉरीशस ने अपने देश के बैंकों में भारतीयों के कालेधन को सुरक्षित स्थान न देने का वादा किया है लेकिन इस दिशा में भारत को अभी बहुत कुछ करना है। इसमें सबसे पहली जरूरत तो यह है कि सरकार देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को सिरे से खत्म करने की पहल करे क्योंकि यही भ्रष्टाचार काली कमाई की जड़ है। भ्रष्टाचार से कमाई करने वालों के पास अपने पैसे छिपाने के लिए स्विस बैंक  के दर्जनों विकल्प मौजूद हैं। क्या हर बार अलग-अलग देशों की सरकारों से बातचीत करने से बेहतर नहीं होगा कि देश में कालेधन के स्रोत पर ही सीधा वार किया जाए?

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