कर्नाटक में अवैध खनन का मुद्दा उससे कहीं बड़ा है जितना पहली नजर में दिखता है। राज्य के लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े इस पर काफी समय पहले से काम कर रहे हैं। उनकी ही सक्रियता का नतीजा था कि दबाव में आए राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को पिछले वर्ष राज्य के दस बंदरगाहों से लौह अयस्क के निर्यात पर पाबंदी की घोषणा करनी पड़ी थी। वह घोषणा करते हुए उन्होंने जिस तरह की संजीदगी दिखाई थी, उसे याद करने वाले अब अवैध खनन पर लोकायुक्त की रिपोर्ट में येदियुरप्पा का नाम आने से सकते में हैं। आखिर वह ईमानदार चेहरा अवैध लौह अयस्क खनन में कैसे लिप्त हो सकता है? लेकिन चेहरे के भाव छिपाने में भारतीय राजनेता काफी अरसा पहले ही महारत हासिल कर चुके हैं। उनके दिल की बात भांप लेना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन सी बात हो चली है। येदियुरप्पा की इस कलाकारी की फांस में खुद भाजपा फंस गई है। संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को प्रभावी रूप से घेरने की उसकी मंशा पहले ही ढीली पडऩे लगी है। येदियुरप्पा को अनुशासन का पाठ पढ़ा पाना भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए काफी मुश्किल साबित हो रहा है क्योंकि वे घर में खुद पर उठते विवादों को पीछे छोड़कर विदेश में सपरिवार सैर-सपाटा कर रहे हैं। राज्य की जनता को भी अब अपने उस फैसले पर रंज हो रहा है जब उन्होंने येदियुरप्पा के साफ चेहरे को देखकर राज्य की सत्ता भापजा के हाथों सौंपने का निर्णय लिया था। उनके पसंदीदा मुख्यमंत्री के साथ ही उनकी चुनी हुई सरकार भी चौतरफा विवादों में घिर गई है। विकास कार्य चौपट हैं तो पार्टी में येदियुरप्पा की फांस से निकलने की कसमसाहट भी देखने को मिल रही है। प्रदेश भाजपा इकाई के विधायक भले ही अब तक खुलकर उनके खिलाफ कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार ने खामोशी तोड़ दी है। उनका डर जायज है। अगर एक राष्टक्रीय स्तर की पार्टी अपने एक मुख्यमंत्री के सामने बार-बार घुटने टेकने की मजबूरी दर्शाती रहेगी तो संसद में वह कुछ भी कहे या करे, उसके प्रभावी होने में संदेह बना ही रहेगा। यह उसके राजनीतिक कद को घटाएगा ही और भाजपा का राजनीतिक कद वाकई घटने भी लगा है। अजीब सी बात है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को इस प्रकरण में लंबे समय बाद सक्रिय होने की जरूरत समझ में आई। फिर भी उन्होंने भ्रष्टचार के एक आरोपी मुख्यमंत्री के खिलाफ अपने स्तर से सीधा कदम उठाने की हिम्मत नहीं की। उन्हें नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों की अनुमति लेने के लिए खुद जाना पड़ा क्योंकि संघ पर येदियुरप्पा की पकड़ भी मजबूत है। ऐसे में पार्टी देश के कथित महाघोटालों के आरोपियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के लिए केंद्र सरकार से कैसे और किस मुंह से बात करेगी? साफ है कि येदियुरप्पा की फांस काफी मजबूत है और पार्टी कमजोर।
Saturday, July 30, 2011
येदियुरप्पा की फांस
कर्नाटक में अवैध खनन का मुद्दा उससे कहीं बड़ा है जितना पहली नजर में दिखता है। राज्य के लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े इस पर काफी समय पहले से काम कर रहे हैं। उनकी ही सक्रियता का नतीजा था कि दबाव में आए राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को पिछले वर्ष राज्य के दस बंदरगाहों से लौह अयस्क के निर्यात पर पाबंदी की घोषणा करनी पड़ी थी। वह घोषणा करते हुए उन्होंने जिस तरह की संजीदगी दिखाई थी, उसे याद करने वाले अब अवैध खनन पर लोकायुक्त की रिपोर्ट में येदियुरप्पा का नाम आने से सकते में हैं। आखिर वह ईमानदार चेहरा अवैध लौह अयस्क खनन में कैसे लिप्त हो सकता है? लेकिन चेहरे के भाव छिपाने में भारतीय राजनेता काफी अरसा पहले ही महारत हासिल कर चुके हैं। उनके दिल की बात भांप लेना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन सी बात हो चली है। येदियुरप्पा की इस कलाकारी की फांस में खुद भाजपा फंस गई है। संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को प्रभावी रूप से घेरने की उसकी मंशा पहले ही ढीली पडऩे लगी है। येदियुरप्पा को अनुशासन का पाठ पढ़ा पाना भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए काफी मुश्किल साबित हो रहा है क्योंकि वे घर में खुद पर उठते विवादों को पीछे छोड़कर विदेश में सपरिवार सैर-सपाटा कर रहे हैं। राज्य की जनता को भी अब अपने उस फैसले पर रंज हो रहा है जब उन्होंने येदियुरप्पा के साफ चेहरे को देखकर राज्य की सत्ता भापजा के हाथों सौंपने का निर्णय लिया था। उनके पसंदीदा मुख्यमंत्री के साथ ही उनकी चुनी हुई सरकार भी चौतरफा विवादों में घिर गई है। विकास कार्य चौपट हैं तो पार्टी में येदियुरप्पा की फांस से निकलने की कसमसाहट भी देखने को मिल रही है। प्रदेश भाजपा इकाई के विधायक भले ही अब तक खुलकर उनके खिलाफ कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार ने खामोशी तोड़ दी है। उनका डर जायज है। अगर एक राष्टक्रीय स्तर की पार्टी अपने एक मुख्यमंत्री के सामने बार-बार घुटने टेकने की मजबूरी दर्शाती रहेगी तो संसद में वह कुछ भी कहे या करे, उसके प्रभावी होने में संदेह बना ही रहेगा। यह उसके राजनीतिक कद को घटाएगा ही और भाजपा का राजनीतिक कद वाकई घटने भी लगा है। अजीब सी बात है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को इस प्रकरण में लंबे समय बाद सक्रिय होने की जरूरत समझ में आई। फिर भी उन्होंने भ्रष्टचार के एक आरोपी मुख्यमंत्री के खिलाफ अपने स्तर से सीधा कदम उठाने की हिम्मत नहीं की। उन्हें नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों की अनुमति लेने के लिए खुद जाना पड़ा क्योंकि संघ पर येदियुरप्पा की पकड़ भी मजबूत है। ऐसे में पार्टी देश के कथित महाघोटालों के आरोपियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के लिए केंद्र सरकार से कैसे और किस मुंह से बात करेगी? साफ है कि येदियुरप्पा की फांस काफी मजबूत है और पार्टी कमजोर।
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