Thursday, August 18, 2011

कोयले से निकली आस

बाजार पूंजीकरण  के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र की कोई कंपनी निजी क्षेत्र के विशालकाय कॉरपोरेट घरानों को पछाड़कर आगे निकल जाएगी इस बात की कल्पना भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी नहीं रही होगी। आम तौर पर भारत के मिश्रित अर्थतांत्रिक ढांचे और सार्वजनिक उपक्रमों की संकल्पना के लिए पं. नेहरू को ही सराहा जाता रहा है। उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में भी उनकी सोच संदर्भहीन नहीं हुई। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां एक लंबे समय तक अपनी उपादेयता पर उठते सवालों के घेरे में बनी रहीं लेकिन किसी को यह मानने में कभी आपत्ति नहीं हुई कि जिस दिन इन कंपनियों ने अपना घेरा तोड़कर बाहर निकलने का निर्णय कर लिया उस दिन इनका कारोबार किसी भी निजी कंपनी से आगे निकल सकता है। कोल इंडिया लिमिटेड ने अपनी सफलताओं के सफर से इस विश्वास को सही साबित किया है। किसी जमाने में आर्थिक रूप से अत्यधिक दबावों में काम करने वाली यह कंपनी अब भारत की सबसे कीमती कंपनी बन चुकी है। इस कंपनी ने बाजार पूंजीकरण के मामले में एक दशक से अधिक समय से लगातार अव्वल मानी जाती रही रिलायंस इंडस्ट्रीज को पीछे छोड़ दिया है। यह 2 लाख 51 हजार 296 करोड़ रुपए के बाजार पूंजीकरण के साथ रिलांयस से 4 हजार 167 ·रोड़ रुपए अधिक कीमती बन गई है। कोई शक नहीं कि यह एक शानदार प्रदर्शन है। कोल इंडिया का समूचा प्रबंध तंत्र इसके लिए बधाई का हकदार है। आर्थिक या वित्तीय लाभ से अधिक इस कंपनी ने अब सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए नई संभावनाओं का एक नया द्वार खोल दिया है। अगर सार्वजनिक कंपनियों का प्रबंधन निजीकरण के दौर में मिले हर तजुर्बे का फायदा उठाएं तो उन्हें भी निश्चित तौर पर बाजार का एक नया क्षितिज नजर आएगा, उस बाजार में अपनी भूमिका निभाने के लिए पूरी तैयारी के साथ काम किया जाए तो कोई कारण नहीं जो यह कंपनियां तेज तरक्की की राह पर न चल सकें। कहा जा सकता है कि कोल इंडिया जैसी प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित कंपनी के लिए विकास के राजपथ पर चलना उतना ही  आसान है जितना कि रिलायंस जैसी पारंपरिक  ईंधनों पर आधारित रिलायंस के लिए। इसके समर्थन में सार्वजनिक क्षेत्र की ही देश की तीसरी सर्वाधिक बाजार पूंजी प्राप्त करने वाली कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस कॉरपोरेशन का उदाहरण भी दिया जा सकता है लेकिन यह कोई टिकाऊ दलील नहीं होगी। सच यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कई बड़ी कंपनियों के प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित होने के बावजूद वे आधुनिक प्रबंधन और प्रतियोगिता के सामने टिक न पाने के कारण उनकी कुछ खास तरक्की नहीं दिख रही है। कई कंपनियों से सरकारी पूंजी हटाने के लिए विनिवेश मंत्रालय तक गठित करना पड़ा है। बेशक महारत्न कंपनी कोल इंडिया आशा की एक नई किरण जगाती है।

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